कमला और पूसा धान की खेती के लिए अब बनेगीं वरदान

Aug 1, 2025 - 08:11
Aug 2, 2025 - 07:08
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कमला और पूसा धान की खेती के लिए अब बनेगीं वरदान
  • केंद्रीय कृषि मंत्री ने जारी की धान की अधिक पैदावार देने वाली दो जीनोम सम्पादित उन्नत किस्में
  • उच्च पैदावार, जलवायु अनुकूलन और जल संरक्षण में बड़े परिवर्तन की क्षमता 

नई दिल्ली। केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने धान की खेती करने वाले किसानों के लिए आईसीएआर द्वारा विकसित देश की पहली जीनोम-संपादित धान की दो किस्में डीआरआर धान 100 (कमला) और पूसा डीएसटी चावल - 1 जारी की है। इन किस्मों में उच्च पैदावार, जलवायु अनुकूलन एवं जल संरक्षण में क्रांतिकारी परिवर्तन लाने की क्षमता है।

 धान की पैदावार बढ़ाने के साथ ही खेती की लागत कम करने और पानी की बचत करने के लिए कृषि विश्वविद्यालयों के द्वारा धान की नई-नई किस्में विकसित की जा रही हैं। इन किस्मों को जारी करने के बाद एक समारोह में केन्द्रीय कृषि मंत्री दोनों किस्मों के अनुसंधान में योगदान करने वाले वैज्ञानिकों को सम्मानित किया।

  कृषि मंत्री ने बताया कि वैज्ञानिकों द्वारा चावल की दो नई किस्में विकसित की गई है, जिसमें से एक डीआरआर धान 100 (कमला) है, जिसे आईसीएआर-भारतीय चावल अनुसंधान संस्थान हैदराबाद द्वारा विकसित किया गया है। वहीं दूसरी किस्म पूसा डीएसटी राइस - 1 है, जिसे आईसीएआर-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा विकसित किया गया है।

जाने डीआरआर धान 100 (कमला) किस्म की विशेषता

भारतीय चावल अनुसंधान संस्थान, हैदराबाद ने एक बारीक दाने वाली बहुप्रचलित किस्म सांबा महसूरी (बीपीटी 5204) में दानों की संख्या बढ़ाने के लिए जीनोम संपादन से किया है। नई किस्म कमला अपनी मूल किस्म सांबा महसूरी (बीपीटी 5204) की तुलना में बेहतर उपज, सूखा सहिष्णुता, नाइट्रोजन उपयोग में दक्ष और 20 दिन पहले पककर तैयार हो जाती है। अखिल भारतीय परीक्षण में डीआरआर धान 100 (कमला) की औसत उपज 5.3 टन प्रति हेक्टेयर पाई गयी जो साम्बा महसूरी (4.5 टन) से 19% अधिक है।

पूसा डीएसटी राइस - 1 की विशेषता

पूसा संस्थान, नई दिल्ली ने धान की बहुप्रचलित किस्म एमटीयू 1010 में सूखारोधी क्षमता और लवण सहिष्णुता के लिए उत्तरदायी जीन “डीएसटी” को संपादित कर नई किस्म डीएसटी राइस 1 का विकास किया है। एमटीयू 1010 किसानों के बीच बहुत लोकप्रिय है, क्योंकि इसका दाना लम्बा-बारीक होता है, दक्षिण भारत में रबी सीजन के चावल की खेती के लिए अत्यधिक उपयुक्त है। यह सूखे और लवणता सहित कई अजैविक तनावों के प्रति संवेदनशील है। पूसा डीएसटी चावल 1 लवणता और क्षारीयता युक्त मृदा में एमटीयू 1010 की तुलना में 20 प्रतिशत अधिक उपज देती है।

इन राज्यों के लिए जारी की गई हैं धान की किस्में

धान की नई उन्नत विकसित किस्में आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, तमिलनाडु, पुडुचेरी, केरल, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, ओडिशा, झारखंड, बिहार, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल के लिए उपयुक्त हैं। इन क्षेत्रों में करीब 5 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्रफल में इन क़िस्मों की खेती की जा सकेगी जिससे धान के उत्पादन में 4.5 मिलियन टन की वृद्धि होगी। साथ ही ग्रीन हाउस गैस के उत्सर्जन में 20 प्रतिशत यानि 3200 टन की कमी आएगी। इन किस्मों में उच्च उत्पादन, जलवायु अनुकूलन एवं जल संरक्षण में क्रांतिकारी परिवर्तन लाने की क्षमता है। इन नयी किस्मों का विकास क्रिस्पर-कैस आधारित जीनोम-संपादित तकनीक का उपयोग करके किया गया, जो बिना विदेशी डीएनए को शामिल किए हुए जीव के आनुवंशिक सामग्री में सटीक परिवर्तन लाती है।

  1. दोनों किस्मों की खेती से उपज में 19 प्रतिशत की वृद्धि होगी।
  2. ग्रीन हाउस गैस के उत्सर्जन में 20 प्रतिशत की कमी आएगी।
  3. सिंचाई जल में 7,500 मिलियन घन मीटर की बचत होगी।
  4. सूखा, लवणता एवं जलवायु तनावों के प्रति यह दोनों ही किस्में उच्च सहिष्णु हैं।

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