Til Ki Kheti: तिल के बीजों पर मिल रहे अनुदान उठाएं लाभ, किसान पा सकते है अधिक मुनाफा
अन्य फसलों के अलावा यूपी सरकार अब तिल की खेती करने वाले किसानों के लिए मददगार बन रही है। इसके लिए सरकार अब किसानों को तिल के बीज पर अनुदान मुहैया करा रही है। तिल के बीजों पर कृषि विभाग 95 रुपए प्रति किग्रा. की दर पर अनुदान उपलब्ध करा रही है। साथ उन्हें बेहतर खेती के वैज्ञानिक विधि का प्रशिक्षण भी दे रही है। यूं तो खरीफ के मौसम में यूपी में लगभग पांच लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में इसकी खेती की जाती है। इसकी खेती समतल और कम वर्षा वाले क्षेत्रों में की जा सकती है। इसमें लागत कम लगती है लेकिन बाजार मूल्य अधिक होने के कारण लाभ होने की संभावना बेहद प्रबल हो जाती है।
उप्र के पूर्व कृषि निदेशक डॉ. जितेंद्र कुमार तोमर ने बताया कि तिल की खेती के लिए गर्म और शुष्क जलवायु की जरूरत होती है। इसके लिए दोमट या हल्की बलुई दोमट अधिक उपयुक्त होती है। वहीं इसकी बुआई खरीफ सीजन में जुलाई के अन्तिम सप्ताह तक की जा सकती है। उन्होंने बताया कि बुवाई की विधि में कतार से कतार की दूरी़ 30-45 सेमी, पौधे से पौधे की दूरी 10-15 सेमी अधिक उत्पादन के लिए ठीक मानी जाती है।
इस विधि से करें बीजोपचार
तिल के बीज बोने से पहले थिरम या कार्बेन्डाजिम 2.5 ग्राम प्रति किग्रा से बीजोपचारित करने से मृदा एवं बीज जनित रोगों से बचाव किया जा सकता है तथा बीजों में अंकुरण बेहतर होता है या जैविक कीटनााशी ट्राइकोडर्मा 4 ग्रा प्रति किग्रा की दर से बीज उपचारित किया जा सकता है।
ऐसे करें खरपतवार नियंत्रण के लिए उपाय
तिल की खेती के दौरान खरपतवार नियंत्रण के लिए बुआई के बाद पेडीमेथालिन का उपयोग किया जा सकता है। फूल आने व दाना भरने की अवस्था मे सिंचाई जरूरी है। वहीं तना एवं फल सड़न बीमारी की रोकथाम के लिए थायोफेनेट मिथाइल या कार्बेन्डाजिम का छिड़काव तथा पत्ती झुलसा रोग के लिए मैनकोजेब या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड का प्रयोग आवश्यक है। जबकि कीटों से बचाव के लिए क्विनालफाक्स या डाइमेथोएट का छिड़काव का प्रयोग आर्थिक क्षति स्तर से अधिक क्षति होने पर ही करना चाहिए।
औषधीय महत्व
तिल का उपयोग उच्च पोषकमान यथा प्रोटीन की मात्रा 20.9 प्रतिशत, वसा 53.5 प्रतिशत परंतु कोलेस्ट्राल की मात्रा शून्य पायी जाती है। इसके साथ ही विटामिन-ए, बी-1, बी-2, बी-6, बी-11, पोटैशियम, कैल्सियम, फास्फोरस, आयरन, मैगनीशियम एवं जिंक) के कारण खाद्य के रूप में प्रयोग किया जाता रहा है।
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