सफलता की कहानी : जुनून और समर्पण के कारण किसानों के लिए प्रेरणा बने रामसरण
- सीमित संसाधन में भी नहीं डिगा हौसला, संघर्षों से हासिल किया खेती में नया मुकाम
- खेती में बेहतर योगदान के लिए 2019 में पद्मश्री सम्मान के हुए अलंकृत
जिद और जुनून हो तो व्यक्ति असंभव कार्य को भी बड़ी ही सरलता से संभव कर सकता है। इसकी मिसाल उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जनपद के एक किसान ने पेश की है। अब वह खेती को लेकर हजारों किसानों के लिए प्रेरणा बन चुके हैं। यहीं नहीं मेहनत, लगन और समर्पण के कारण उन्हें खेती की कला के लिए उन्हें 2019 में पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया चुका है।
हम बात कर रहे हैं बाराबंकी जनपद के रामसरन वर्मा की, जो पेशे से एक किसान हैं। हालांकि उन्हें यह उपलब्धि एक दिन में नहीं मिली बल्कि इसके पीछे उनके संघर्षों की एक लंबी फेहरिस्त है। घर की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण वह पढ़ाई के दौरान अपने पिता के साथ खेती में हाथ बटाते थे लेकिन पारंपरिक विधि से की जा रही खेती और सीमित मुनाफे के कारण उन्हें खेती में बेहतर भविष्य तलाशना काठी दिख रहा थे। यही वजह थी कि राम सरण ने पिता के सामने पारंपरिक फसलों को छोड़ फल और सब्जियों की खेती का प्रस्ताव रखा लेकिन पिता की ओर से उनके प्रस्ताव को ठुकराने के बाद भी उन्होंने अपना ध्येय नहीं बदला और अपने लक्ष्य को पाने का जुनून बरकरार रखा। इसके लिए उन्होंने देश के सफल किसानों, कृषि वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों से कृषि की तकनीक का प्रशिक्षण प्राप्त किया। हालांकि यह रास्ते में भी उन्हें काफी आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा। इस बाबत उनका कहना है कि उन्होंने इसके लिए 1984 में किसी तरह पांच हजार रुपए जुटा कर कृषि विशेषज्ञों से बातचीत करते हुए पुर भट्ट की यात्रा की। जब वह लौटे तो उन्होंने टिशू klclchr से केले की खेती करने का निर्णय लिया। उनके लिए खुशी की बात यह रही कि इस बार उनके पिता का उन्हें स्थान और सहयोग मिला।इस तरह उन्होंने 1988 में पिता के साथ मिलकर एक एकड़ में केले की खेती से अपने सफर की शुरुआत की।
रामसरण की मेहनत ने उन्हें देश में नहीं बल्कि के विदेशों में भी पहचान दिलाई है। 2006 में उन्हें पहली बार केंद्र सरकार की ओर से जगजीवन पुरस्कार से सम्मानित किया गया, जिसके बाद जिला स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक का ऐसा कोई सम्मान नहीं है, जो उनको न मिला हो। यही नहीं उनकी इन्हीं उपलब्धियों के लिए की उन्हें 2019 में पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
अन्य किसानों को भी सिखा रहे बेहतर खेती के गुर
अपने पूरे सफर एवं सफलता पर रामसरण बताते हैं, कि खेती में प्रयोग किए जाने वाले उर्वरक एक निश्चित समय तक ही फसल को फायदा पहुंचाते हैं। उनका कहना है किसान एक फसल चक्र और अपनी सूझबूझ के अनुसार खेती करें तो वह फसल में होने वाले खर्चों को 20 से 30 % तक कम सकता है। उदाहरण के तौर पर यदि आप आलू के बाद केला बोते हैं, तो खेत में 20 प्रतिशत कम खाद की जरूरत होती है। इसी के साथ केले के बाद आलू लगाने के लिए 50 % एवं आलू के बाद टमाटर जैसी फसल उगाने पर 20% तक उर्वरक आवश्यकता कम की जा सकती है।
दोस्तो, रामसरण की मेहनत और खेती के क्षेत्र प्रेम और समर्पण अन्य किसानों को भी प्रेरणा देती है।
ऐसे में यदि आप भी ऐसे किसी किसान की कहानी जानते हैं या आपके आस पास ऐसे कोई किसान भाई हैं तो हमें लिख भेजें।
हमारा पता है awadhikisan@gmail.com
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