खेतों की मिट्टी को उपजाऊ बनाने में केंचुओं का योगदान अहम

खेती किसानी के लिए मिट्टी का उपजाऊ होना बेहद जरूरी है। इसमें सबसे बड़ी भूमिका केंचुए की होती है क्योंकि इनमें ही मिट्टी की उर्वरकता बनाए रखने की क्षमता होती है। इसलिए केंचुओं को किसान का मित्र, खेत का हल चलाने वाला, धरती की आंत और जैविक संकेतक के रूप में भी जाना जाता है।
केंचुए की प्रजातियां हैं...
केंचुओं की प्रजाति को लेकर जबलपुर कृषि विभाग के उप संचालक ने बताया कि देश में कई जातियों के केंचुए पाये जाते हैं। इनमें से केवल फेरिटाइमा और यूटाइफियस प्रजाति के केंचुए आसानी से पाए जाते हैं। उन्होंने बताया कि फेरिटाइमा पॉसथ्यूमा पूरे देश में मिलता है। फेरिटाइमा की वर्म कास्टिंग मिट्टी की पृथक गोलियों के छोटे ढेर जैसी होती है और यूटाइफियस की कास्टिंग मिट्टी की उठी हुई रेखाओं के समान होती है। ये भूमि को एक प्रकार से जोतकर किसानों के लिये उपजाऊ बनाते हैं। वर्म कास्टिंग की ऊपरी मिट्टी सूख जाती है, फिर बारीक हो कर भूमि की सतह पर फैल जाती है। इस तरह जहां केंचुए रहते हैं वहां की मिट्टी पोली हो जाती है, जिससे पानी और हवा भूमि के भीतर सुगमता से प्रवेश कर सकती है। यही कारण है इस प्रकार केंचुए हल के समान कार्य करते हैं।
उन्होंने बताया कि एक एकड़ में लगभग 10 हजार से ऊपर केंचुए रहते हैं। ये केंचुए एक वर्ष में 14 से 18 टन या 400 से 500 मन मिट्टी भूमि के नीचे से लाकर सतह पर एकत्रित कर देते हैं। इससे भूमि की सतह 1/5 इंच ऊंची हो जाती है। यह मिट्टी केंचुओं के पाचन अंग से होकर आती है, इसलिये इसमें नाइट्रोजन युक्त पदार्थ भी मिल जाते हैं और यह खाद का कार्य करती है। इस प्रकार ये मनुष्य के लिये भूमि को उपजाऊ बनाते रहते हैं। यदि केचुओं को पूरी तरह से भूमि से हटा दिया जाये तो हमारे लिये समस्या उत्पन्न हो जायेगी। यह जरूरी है कि मिट्टी में इन छोटे जीवों को संरक्षित किया जाये ताकि यह मानव जाति को अपनी अमूल्य सेवाएं प्रदान करना जारी रखें।
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