कपास की फसल के लिए मुसीबत बने हरे लीफहॉपर
उत्तर भारत के कई क्षेत्रों में हरे लीफहॉपर का प्रकोप तेजी से बढ़ रहा है। यही वजह है कि हरियाणा, पंजाब और राजस्थान में कपास की फसल को खतरा पैदा हो गया है। इसके पीछे वर्ष लंबे समय तक गीला और नमी वाला मौसम मुख्य कारण माना जा रहा है।
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार मानसा जिले के साहनेवाली गांव के किसान हरजिंदर सिंह ने कहा कि ग्रीन लीफहॉपर ने उनकी पूरी 4 एकड़ कपास की फसल पर धावा बोल दिया है। इस साल उन्हें उपज में 20 - 25 प्रतिशत की क्षति होने डर सता रहा है। उन्होंने बताया कि पूरे गांव में सिर्फ कपास की खेती होती है और इस मौसम में एक भी इनके प्रकोप से बचा नहीं है। अभी तक कृषि विभाग का कोई अधिकारी नुकसान का आकलन करने नहीं आया है। वहीं हरियाणा के सिरसा किसान मनप्रीत सिंह को भी इस परेशानी से दो - चार होना पड़ रहा है। उन्होंने बताया कि भी उनकी 17 एकड़ की कपास की पूरी फसल प्रभावित हुई है। उन्होंने आशंका जताई है कि इस बार उपज में 20 - 25 फीसदी के नुकसान की संभावना है। इसी गांव के ही बिट्टू सिंह ने कहा कि उन्होंने शुरुआत में पत्तियों के पीले पड़ने और मुड़ने को बारिश से हुए नुकसान के रूप में समझा, लेकिन जल्द ही उन्हें एहसास हुआ कि यह हरा तेला के कारण था। उन्होंने दावा किया, 'हमने अनुशंसित कीटनाशकों का छिड़काव करने में देरी की और अब केवल कुछ पौधों में ही सुधार के संकेत दिख रहे हैं।
ग्रीन लीफहॉपर, जिसे इंडियन कॉटन जैसिड और स्थानीय तौर पर हरे रंग का फुदका या कहीं-कहीं पर हरा तेला भी कहा जाता है। इनकी वजह से कई जगहों पर फसल को काफी क्षति हुई है। इसी नुकसान को लेकर किसानों की चिंताएं बढ़ी हैं। विशेषज्ञों के अनुसार औसत से ज्यादा बारिश, लगातार नमी, बारिश के दिनों में इजाफा होना और लगातार बादल छाए रहना, ये सभी वजहें इस कीट के लिए एक आदर्श प्रजनन वातावरण बनाती हैं। इसकी वजह से उपज में 30 प्रतिशत तक की संभावित क्षति हो सकती है।
पत्तियों के लिए है नुकसानदायक
साउथ एशिया बायो टेक्नोलॉजी सेंटर जोधपुर की तरफ से प्रोजेक्ट बंधन के तहत किए गए एक क्षेत्र सर्वे ने हरियाणा, पंजाब, और राजस्थान के प्रमुख कपास उत्पादक जिलों में जैसिड की उपस्थिति में खासा इजाफा होने की पुष्टि की है। हर पत्ती 12-15 लीफहॉपर का इनफेक्शन लेवल दर्ज किया गया है - जो आर्थिक सीमा स्तर से कहीं ज्यादा है। साथ ही पत्तियों को ग्रेड III और IV की गंभीरता तक पहुंचने वाला साफ नुकसान भी देखा गया है।
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