चने की खेती : दलहनी फसलों में चना बेहद ही महत्वपूर्ण फसल

दलहनी फसलों में चना बेहद ही महत्वपूर्ण फसल है। यह सर्वप्रथम मध्य-पूर्वी एशियाई देशों में उगाया गया हालांकि भारत, मध्यपूर्वी इथोपिया, मक्सिको, अर्जेंटीना, चिली, पेरू व आस्ट्रेलिया इसकी खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। भारत में चने की खेती सिंचित और असिंचित दोनों क्षेत्रों में की जाती है। रबी मौसम से संबंधित होने के इसकी खेती शुष्क एवं ठंडे जलवायु में किया जाता है जहाँ पर 60 से 90 से.मी. बारिश होती है ।
भारत में दलहन उत्पदान को बढ़ाने के लिए सरकार ने भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान दलहनी फसलों पर शोध संस्थान स्थापित किया है । मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक एवं गुजार देश के मुख्य चना उत्पादक राज्य है।
खेती के लिए भूमि की तैयारी
चना की खेती बलुई, दोमट से गहरी दोमट में आसानी की जा सकती है। सही जल निकास तथा माध्यम उर्वरता वाली पी.एच. मान 6–7.5 हो, जो चने की अच्छी फसल लेने के लिए उपयुक्त होती है। अधिक उपजाऊ भूमि में चना के पौधों में वानस्पतिक वृद्धि ज्यादा होती है व फसल में फूल और फल कम लगते हैं। असिंचित व बारानी क्षेत्रों में चना की खेती के लिए चिकनी दोमट भूमि उपयुक्त है। हल्की ढलान वाले खेतों में चना की फसल अच्छी होती है। ढेलेदार मिट्टी में देशी चने की भरपूर फसल ली जा सकती है। चना की फसल के लिए भूमि या खेत के कोठार होने पर अंकुर प्रभावित होता है एवं पौधे की वृद्धि कम होती है। इसलिए, मृदा वायु संचारण को बनाए रखने के लिए जुताई की आवश्यकता होती है। साथ ही जल निकास का उचित प्रबंधन भी जरूरी है।
इस तरह करें चने की बुआई
चने की बुआई अक्टूबर के दूसरे या तीसरे सप्ताह तक कर देनी चाहिए | सिंचित दशा में बुआई नवम्बर के दूसरे सप्ताह तक तथा पछैती बुआई दिसम्बर के प्रथम सप्ताह तक की जा सकती है | बुआई हल के पीछें कूंडो में 6-8 से.मी. की गहराई पर करनी चाहिए | कूंड से कूंड की दुरी असिंचित तथा पछैती दशा में बुआई में 30 सेमी. तथा सिंचित एवं काबर या मार भूमि में 45 सेमी. रखनी चाहिए |
खाद या उर्वरक का प्रयोग
सभी प्रजातियों के लिए 20 किग्रा. नत्रजन, 60 किग्रा. फास्फोरस, 20 किग्रा. पोटाश एवं 20 किग्रा. गंधक का प्रयोग प्रति हेक्टेयर की दर से कूंडो में करना चाहिए | संस्तुति के आधार पर उर्वरक प्रयोग अधिक लाभकारी पाया गया है | असिंचित अथवा देर से बुआई की दशा में 2 प्रतिशत यूरिया के घोल का फूल आने के समय छिडकाव करें |
चने की फसल में सिंचाई :
पहली सिंचाई शाखायें बनते समय (बुवाई के 45 – 60 दिन बाद) तथा दूसरी सिंचाई फली बनते समय देने से अधिक लाभ मिलता है |
चना में फुल बनने की सक्रिय अवस्था में सिंचाई नहीं करनी चाहिए | इस समय सिंचाई करने पर फुल झड सकते हैं एवं अत्यधिक वानस्पतिक वृद्धि हो सकती है | रबी दलहन में हल्की सिंचाई (4 – 5 से.मी.) करनी चाहिए क्योंकि अधिक पानी देने से अनावश्यक वानस्पतिक वृद्धि होती है एवं दाने की उपज में कमी आती है |
प्राय: चने की खेती असिंचित दशा में की जाती है | यदि पानी की सुविधा हो तो फली बनते समय एक सिंचाई अवश्य करें | चने की फसल में स्प्रिंकलर (बौछारी विधि) से सिंचाई करें |
फसल में लगने वाले मुख्य कीट
कटुआ कीट
इस कीट की भूरे रंग की सूडियां रात में निकल कर नये पौधों की जमीन की सतह से काट कर गिरा देती है | कटुआ कीट वानस्पतिक अवस्था में एक सुंडी प्रति मीटर तक आर्थिक क्षति पहुँचता है |
अर्द्धकुण्डलीकार कीट
इस कीट की सुड़ियाँ हरे रंग की होती है जो लूप बनाकर चलती है | सुड़ियाँ पत्तियों, कोमल टहनियों, कलियों, फूलों एवं फलियों को खाकर क्षति पहुँचती है | अर्द्धकुंडलीकार कीट फूल एवं फलियाँ बनते समय 2 सूडी प्रति 10 पौधें आर्थिक क्षति पहुँचाता है |
फली बेधक कीट :
इस कीट की सुड़ियाँ हरे अथवा भूरे रंग की होती है | सामान्यतयः पीठ पर लम्बी धारी तथा किनारे दोनों तरफ पतली लम्बी धारियाँ पायी जाती है | नवजात सुड़ियाँ प्रारम्भ में कोमल पत्तियों को खुरच कर खाती है तथा बाद में बड़ी होने पर फलियों में छेद बनाकर सिंर को अन्दर कर दोनों को खाती रहती है | एक सूडी अपने जीवन काल में 30-40 फलियों को प्रभावित कर सकती है | तीव्र प्रकोप की दशा में फलियां खोखली हो जाती है तथा उत्पादन बुरी तरह से प्रभावित होता है | फलीबेधक कीट फूल एवं फलियां बनते समय 2 छोटी अथवा 1 बड़ी सूडी प्रति 10 पौधा अथवा 4-5 नर पतंगे प्रति गंधपाश लगातार 2-3 दिन तक मिलने पर आर्थिक क्षति पहुँचाता है |
नियंत्रण के उपाए :
गर्मी में (मई-जून) गहरी जुताई करनी चाहिए | समय से बुआई करनी चाहिए |
खेत में जगह-जगह सुखी घास के छोटे-छोटे ढेर को रख देने से दिन में कटुआ कीट की सुड़ियाँ छिप जाती है जिसे प्रातः काल इकटठा कर नष्ट कर देना चाहिए |
चने के साथ अलसी, सरसों, धनियाँ की सहफसली खेती करने से फली बेधक कीट से होने वाली क्षति कम हो जाती है |
खेत के चारों ओर गेंदे के फूल को ट्रैप क्राप के रूप में प्रयोग करना चाहिए।
एक हेक्टेयर क्षेत्रफल में 50-60 बर्ड पर्चर लगाना चाहिए, जिस पर चिड़ियाँ बैठकर सुडियों को खा सके |
फसल की निगरानी करते रहना चाहिए। फूल एवं फलियां बनते समय फली बेधक कीट के लिए 5 गंधपाश प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में लगाना चाहिए।
यदि कीट का प्रकोप आर्थिक क्षति स्तर पार कर गया हो तो निम्नलिखित कीटनाशकों का प्रयोग करना चाहिए ।
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