जाने गोबर की खाद बनाने का सही तरीका, मिलेगा लाभ

गोबर की खाद बनाने की विधि
सरकार की ओर से जैविक एवं प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। रासायनिक खादों के उपयोग से खेती की लागत तीनबढ़ती है वहीं अनावश्यक और अत्यधिक प्रयोग से मिट्टी की उर्वरा शक्ति कम होती है। इसे बेहतर करने के लिए गोबर खाद जिसे “फार्म यार्ड मैन्योर” भी कहा जाता है। यह पशुओं के गोबर, मूत्र, छोड़ा हुआ तूडा आदि के सही गलने और सड़ने से बनती है यानि की बिना किसी खर्चे के तैयार हो जाती है।
गोबर खाद सस्ती होने के साथ यह मिट्टी में सभी प्रकार के मुख्य पोषक तत्वों को पूरा करती है, जो पौधों की वृद्धि के लिए जरूरी होते हैं। गोबर खाद मिट्टी की जल धारण क्षमता को भी बढ़ाती है।
गोबर खाद कैसे बनाएँ?
किसान गोबर की खाद बनाते समय पशु मूत्र का प्रयोग बहुत ही कम करते हैं। जबकि पशु मूत्र में 1 प्रतिशत नाइट्रोजन और 1.35 प्रतिशत पोटेशियम होता है। मूत्र में उपस्थित नाइट्रोजन यूरिया के रूप में उपलब्ध होता है। ऐसे में पशु मूत्र से यूरिया हवा में उड़े नहीं या नीचे मिट्टी में ना चले जाए इसके लिए किसानों को एक ट्रेंच या गड्डा बना लेना चाहिए। जिसकी लंबाई लगभग 6 से 7 मीटर, चौड़ाई 1.5 से 2.0 मीटर और इसकी गहराई 1 मीटर तक रखनी चाहिए।
पशु मूत्र को सोखने के लिए तुड़ा, मिट्टी को पशु मूत्र पर डालना चाहिए। दूसरे दिन मिश्रण को गोबर सहित गड्डे में डाल देना चाहिए। ऐसा रोज करते रहें जब यह भाग भूमि तल से 45 से 60 सेंटीमीटर ऊँचा हो जाये तो इस गोलाकार करके गाय के गोबर और मिट्टी के घोल से लीप दें। किसान ठीक इसी तरह एक गड्डा भर जाने के बाद दूसरा गड्डा बनाये और यही प्रक्रिया दोहराएँ। इस तरह गोबर की खाद 4 से 5 महीने में बनकर तैयार हो जाएगी।
यदि किसान पशु मूत्र को पहले नहीं डाल पाएं हो तो वो किसान सीमेंट से बने गड्डे में बाद में भी मूत्र को मिला सकते हैं। मूत्र व यूरिया को खराब होने से बचाने के लिए रोकने इसमें रासायनिक परिरक्षक मिला सकते हैं। इन्हें शेड के नीचे डाला जाता है।
कब डालें गोबर खाद
गोबर खाद को तुड़ाई से 3-4 हफ्ते पहले खेत में डालना चाहिए। जो खाद जो बचे उसे बुआई के पहले खेत में डालना चाहिए। 10 से 20 टन प्रति हेक्टेयर गोबर की खाद डाली जाती है। चारा फसलों और सब्जियों में 20 टन प्रति हेक्टेयर से ज्यादा खाद की जरूरत होती है।
गोबर की खाद से नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम तुरंत तो नहीं मिलता पर इससे 30 प्रतिशत नाइट्रोजन, 60 से 70 प्रतिशत फॉस्फोरस और 70 प्रतिशत पोटेशियम पहली फसल को मिल जाते हैं। इसके साथ ही मिट्टी की उर्वरा शक्ति में सुधार होता है, जिससे रासायनिक खादों की आवश्यकता कम पड़ती है और खेती के खर्चे में कमी आती है
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