Precision Agriculture प्रिसिजन फार्मिंग (सटीक कृषि ) से बदल सकती है डेयरी सेक्टर की सूरत

देश में मादा गोवंश की आबादी 2019 में 246.7 मिलियन होने के साथ डेयरी पशुओं से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में भी बढ़ोतरी हुई है। कहा जाता है कि देश के पशुधन क्षेत्र में वर्ष 2050 तक वैश्विक एंटरिक मीथेन उत्सर्जन का 15.7 प्रतिशत हिस्सा होने का अनुमान है। "India's Dairy Future: Aligning Livelihoods, Growth, and Climate Solutions" शीर्षक से रिपोर्ट में ये बातें कही गई हैं।
अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी की ओर से प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार, भारत मीथेन का तीसरा सबसे बड़ा उत्सर्जक है। अध्ययनों से पता चलता है कि देश में लगभग 48 प्रतिशत मीथेन उत्सर्जन के लिए पशुधन जिम्मेदार हैं, जिसमें से अधिकांश के लिए मवेशी जिम्मेदार हैं। मादा गोवंश आबादी में उल्लेखनीय वृद्धि और मवेशियों की आंतों में किण्वन से होने वाले उत्सर्जन के बावजूद, देश में प्रति गाय औसत दूध उत्पादन कम बना हुआ है, जो वैश्विक औसत का केवल दो-तिहाई है, जो विकसित देशों की तुलना में बेहद कम है।
क्लाइमेट चेंज और डेयरी सेक्टर
भारतीय उद्योग परिसंघ के खाद्य और कृषि उत्कृष्टता केंद्र और पर्यावरण रक्षा कोष की रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन डेयरी उत्पादकता और पशुधन स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है। गर्मी के कारण दूध की पैदावार कम हो रही है वहीं प्रजनन भी प्रभावित हो रहा है साथ ही बीमारी की संभावना बढ़ी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि अनियमित मौसम से पानी की कमी बढ़ रही है। चारा और पानी की बढ़ती लागत से छोटे किसानों पर ज्यादा वित्तीय दबाव बढ़ रहा है। वहीं चारे के लिए सिंचाई पर निर्भर किसानों के लिए स्थिति और भी चुनौतीपूर्ण है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि डेयरी किसानों को उत्पादकता और लचीलापन दोनों में सुधार के लिए अधिक जलवायु-लचीली डेयरी प्रथाओं को अपनाने की जरूरत है, इसमें संतुलित आहार शामिल है। राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड के राशन संतुलन कार्यक्रम जैसी पहलों के द्वारा इसे समर्थित किया जाता है, ताकि पशुधन उत्पादकता को बढ़ाया व उत्सर्जन को कम किया जा सके। कहा गया है कि साइलेज फीडिंग जैसी प्रथाएं छोटे किसानों के लिए विशेष तौर पर लाभदायक हैं। हाइड्रोपोनिक्स व बाजरा, नेपियर व बाजरा जैसी जलवायु-लचीली चारा फसलों जैसे अभिनव समाधान सूखाग्रस्त क्षेत्रों में चारे की कमी को दूर कर सकते हैं। हालांकि, इन प्रथाओं को व्यापक रूप से अपनाने के लिए सुलभ विस्तार सेवाओं, मजबूत फीड गुणवत्ता मानकों और बेहतर आपूर्ति श्रृंखला के लिए बुनियादी ढांचे की जरूरत पड़ती है।
पशु नस्लों का सुधार
प्रजनन प्रबंधन एक क्षेत्र है, इसमें उच्च-आनुवंशिक-योग्यता वाले बैलों का उपयोग कर कृत्रिम गर्भाधान को संतान में सुधार के लिए अपनाया जाता है। हालांकि, बार-बार प्रजनन और खराब एस्ट्रस पहचान जैसी चुनौतियों के कारण कई बार गर्भाधान की ज़रूरत होती है। दिल्ली, पटना, बेंगलुरु और अहमदाबाद में कई हितधारकों के साथ विचार-विमर्श और भारत के डेयरी क्षेत्र में पंजाब, महाराष्ट्र और तमिलनाडु राज्यों के योगदान पर गहन अध्ययन के बाद तैयार की गई रिपोर्ट में कहा गया है कि बेहतर पशु स्वास्थ्य सेवाओं, कोल्ड चेन इंफ्रास्ट्रक्चर और कर्मचारियों के प्रशिक्षण के माध्यम से ऐसी चुनौतियों का समाधान करने से परिणाम अच्छे हो सकते हैं।
इस तरह कम हो सकता है मीथेन उत्सर्जन
पशुओं के अपशिष्ट को समय पर सुखाना, खाद बनाना व बायोगैस या संपीड़ित बायोगैस उत्पादन सहित खाद प्रबंधन मीथेन उत्सर्जन को कम कर सकता हैं। पशुओं का टीकाकरण, कृमि मुक्ति, जैव सुरक्षा और सटीक एंटीबायोटिक उपयोग जैसी अच्छी पशुपालन प्रथाएं कृषि उत्पादकता और पशु स्वास्थ्य को बेहतर बनाती हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि क्षेत्र-विशिष्ट जैव सुरक्षा प्रोटोकॉल, मजबूत पशु चिकित्सा बुनियादी ढांचे और विनियामक उपायों के माध्यम से इन चुनौतियों का समाधान मिलने की उम्मीद है।
डेयरी फार्मिंग प्रौद्योगिकी का उपयोग
दूध निकलने के लिए स्वचालित प्रणालियों और जलवायु-लचीले शेड सहित सटीक डेयरी फार्मिंग प्रौद्योगिकियां दक्षता बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण क्षमता प्रदान करती हैं, लेकिन उच्च लागत के कारण इनकी पहुंच केवल बड़े फार्म्स तक ही सीमित हैं। लागत प्रभावी समाधान विकसित करने से छोटे किसानों के बीच इनकी पहुंच को बढ़ावा मिल सकता है।
छोटे किसान हैं डेयरी उद्योग की रीढ़
300 मिलियन से अधिक डेयरी मवेशियों और भैंसों के साथ, भारत दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश है, जो वैश्विक दूध उत्पादन में लगभग 25 प्रतिशत का योगदान देता है। यह क्षेत्र भारत के सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 5 प्रतिशत हिस्सा है। छोटे किसान, जिनके पास 2 से 5 पशु हैं, देश की दूध आपूर्ति का 62 प्रतिशत उत्पादन करते हैं और भारत के डेयरी उद्योग की रीढ़ माने जाते हैं।
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