भारत में बढ़ रही बोअर नस्ल की बकरी की मांग
पशु पालकों के लिए खजाना है अफ्रीका से आई या नस्ल
ग्रामीण भारत में बकरी पालन का कारोबार तेजी से फैल रहा है। इसके लिए पशुपालक उच्च क्वालिटी की नस्लों की ओर आकर्षित हो रहे हैं, जिसमें दूध से लेकर मांस उत्पादन बेहतर हो। इसे देखते हुए अफ्रीका के बोअर नस्ल की बकरी की मांग तेजी से बढ़ रही है। यह नस्ल मांस उत्पादन के लिए बेहद लोकप्रिय है। सीआईआरजी मथुरा के विशेषज्ञों के अनुसार भारत में बोअर बकरी पालन का भविष्य उज्ज्वल है। यदि सही प्रशिक्षण, बीमारियों की रोकथाम और बाजार तक पहुंच की सुविधायुक्त हो तो यह ग्रामीण रोजगार का बड़ा साधन बन सकता है।
दक्षिण अफ्रीका से लाई गई नस्ल
दक्षिण अफ्रीका की बोअर नस्ल की बकरी पशुपालकों के लिए खजाने से कम नहीं है। इस नस्ल की खासियत यह हे कि इसका तेज वजन बढ़ना है। एक वयस्क मादा बकरी का वजन 60 से 90 किलो तक होता है, जबकि नर बकरा 100 किलो से भी ऊपर पहुंच सकता है। इस नस्ल की बकरी के मांस की गुणवत्ता के चलते बाजार में भारी मांग है।
व्यवस्था में खर्चा कम
पशुपालन विशेषज्ञों के मुताबिक, 10 बकरियों के लिए करीब 150-200 वर्ग फीट का शेड काफी होता है। मिट्टी या बांस की फर्श, उचित वेंटिलेशन और समय पर सफाई के ज़रिए बीमारी से बचाव किया जा सकता है।
मुनाफे के जानी जाती है यह नस्ल
बोअर बकरी को प्रतिदिन 2-3 किलो हरा चारा (बरसीम, मक्का), 500-700 ग्राम सूखा चारा और 200-300 ग्राम दाना देना पर्याप्त होता है। नीम पत्तियां और खनिज मिश्रण उनके स्वास्थ्य और रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत बनाते हैं।
सुरक्षा और देखभाल
बकरी पालकों को पीपीआर, बकरी चेचक और कीट-नाशक टीकाकरण समय पर कराने की सलाह दी जाती है। साथ ही, नवजात मेमनों को कोलोस्ट्रम पिलाना जरूरी है।
प्रतिवर्ष अच्छी की कमाई संभव
एक छोटे स्तर पर शुरू करने के लिए करीब 1 से 1.5 लाख रुपये का निवेश काफी है। सरकार कई राज्यों में 50-90% तक की सब्सिडी भी देती है। अगर कोई किसान 100 बकरियों का फार्म स्थापित करता है, तो सालाना 30-40 लाख रुपये तक की आय संभव है।
सरकार और बैंक भी दे रहे सहयोग
बिहार, हरियाणा समेत कई राज्य सरकारें सब्सिडी के अलावा नाबार्ड और अन्य बैंकों के ज़रिए कर्ज भी उपलब्ध करा रही हैं, जिससे इच्छुक किसान इस व्यवसाय को आसानी से अपना सकें।
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