Uttar Pradesh : तिल की उन्नत किस्मों पर मिलेगा अनुदान

कम लागत पर किसानों को अधिक लाभ मिल सके, इसके लिए सरकार तिलहन फसलों की खेती को बढ़ावा दे रही है। इसी के तहत सरकार तिल की खेती के लिए उन्नत किस्मों के बीजों पर अनुदान दे रही है। साथ ही किसानों को खेती की वैज्ञानिक विधि की जानकारी भी दी जा रही है।
कृषि विभाग के मुताबिक तिल की खेती विशेष रूप से असमतल भूमि में कम वर्षा वाले क्षेत्रों में की जा सकती है। तिल की खेती में कृषि निवेश ना के बराबर लगता है परंतु तिल का बाजार मूल्य अधिक होने के कारण प्रति इकाई क्षेत्रफल में लाभ भी अधिक मिलने की संभावना रहती है।इन क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है। तिल की खेती के लिए गर्म व शुष्क जलवायु की आवश्यकता होती है। अच्छी जल निकासी वाली दोमट या हल्की बलुई दोमट भूमि तिल की खेती के लिए उपयुक्त होती है, जिसका पीएच मान 6.0 से 7.5 तक हो। तिल की बुआई खरीफ सीजन में जुलाई अंतिम सप्ताह तक की जा सकती है।
बुआई की विधि में कतार से कतार की दूरी 30 से 45 सेमी, पौधे से पौधे की दूरी 10 से 15 सेमी होनी चाहिए। कृषि विभाग के मुताबिक तिल की प्रमुख उन्नत किस्में आर.टी.-346, आर.टी.-351, गुजरात तिल-6, आर.टी.-372, एम.टी.- 2013-3 एवं बी.यू.ए.टी. तिल-1 हैं। सरकार किसानों को तिल की खेती के लिए प्रोत्साहित करने हेतु 95 रुपए प्रति किग्रा की दर पर अनुदान उपलब्ध करा रही है। तिल के बीज बोने से पहले किसान थिरम या कार्बेंडाजिम 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम से बीजोपचार करें। जिससे मिट्टी एवं बीज जनित रोगों से छुटकारा पाया जा सकता है। साथ ही बीजों में अंकुरण बेहतर होता है। इसके अलावा किसान जैविक कीटनाशी ट्राइकोडर्मा 4 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से बीज उपचारित किया जा सकता है।
ऐसे करें खरपतवार और कीट-रोगों का नियंत्रण
तिल में खरपतवार नियंत्रण के लिए किसान बुआई के तुरंत बाद पेंडीमेथालिन दवा का उपयोग कर सकते हैं। तिल में सिंचाई बरसात की स्थिति में आवश्यकता नहीं होती है, लेकिन फूल आने व दान भरने की अवस्था में सिंचाई जरूरी है। तना एवं फल सड़न बीमारी की रोकथाम हेतु थायोफेनेट मिथाइल या कार्बेंडाजिम का छिड़काव तथा पत्ती झुलसा रोग के लिए मैनकोजेब या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड का प्रयोग आवश्यक है। तिल में कीटों के बचाव हेतु क्विनालफॉक्स या डाईमेथोयेट का छिड़काव का प्रयोग आर्थिक क्षति स्तर से अधिक क्षति होने पर ही करना चाहिए।
वैज्ञानिक विधि से खेती करने पर मिलेगा अधिक उत्पादन
जब 70 से 80 प्रतिशत फलिया पीली पड़ जाये तो फसल की कटाई कर लेनी चाहिए तथा पौधों को धूप में अच्छी तरह सुखाकर मड़ाई की जाये। परंपरागत विधि से तिल की खेती करने पर 4 से 6 क्विंटल प्रति हेक्टेयर एवं वैज्ञानिक विधि से खेती करने पर लगभग 8 से 12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक की उपज प्राप्त की जा सकती है। इस प्रकार वैज्ञानिक विधि से खेती करने पर किसानों को कम लागत में लगभग एक लाख रुपए प्रति हेक्टेयर तक आय प्राप्त की जा सकती है।
गुणवत्ता से भरपूर है तिल
तिल में प्रोटीन की मात्रा 20.9 प्रतिशत, वसा 53.5 प्रतिशत परंतु कोलेस्ट्रॉल की मात्रा शुन्य पायी जाती है। इसके साथ ही विटामिन-A, B-1, B-2, B-6, B-11, पोटेशियम, कैल्शियम, फास्फोरस, आयरन, मैग्नीशियम एवं जिंक आदि भरपूर मात्रा में होता है। साथ ही तिल में औषधीय गुण जैसे रक्तचाप, रक्त शर्करा एवं कोलेस्ट्रॉल के स्तर को नियंत्रित करने के साथ ही रोगाणुरोधी तथा कैंसर को नियंत्रित करने के भी गुण पाये जाते हैं। जिसके चलते वर्तमान समय में चिकित्सकों द्वारा तिल के बीज का उपयोग प्रतिदिन करने की सलाह दी जाती है। तिल के तेल की गुणवत्ता उच्च स्तर की होने के कारण प्रतिदिन भोजन में सम्मिलित करने का सुझाव भी आयुर्वेद चिकित्सक की ओर से दिया जाता है।
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