जेट्रोफा (रतनजोत) की खेती

Aug 1, 2025 - 22:38
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जेट्रोफा (रतनजोत) की खेती

जेट्रोफा की खेती औषधि, जैविक खाद, रंग बनाने, खेतों में बाड़ के रूप में व भूमि सुधार सहित कई क्षेत्रों में उपयोगी सिद्ध हुआ है। साथ ही जेट्रोफा उच्च कोटि के बायो डीजल का भी स्त्रोत है। इसे जंगली अरंड, व्याध्र अरंड, रतनजोत, चन्द्रजोत एवं जमालगोटा आदि सामान्य नाम से भी जाना जाता है, इसके अलावा इसका वानस्पतिक नाम जेट्रोफा करकस भी है। 

जलवायु एवं मिट्टीः

जेट्रोफा की खेती दोमट भूमि में अच्छी होती है, यह समशीतोष्ण, गर्म रेतीले, पथरीले तथा बंजर भूमि में होता है। जल जमाव वाले क्षेत्र इसके लिए उपयुक्त नहीं हैं।

बोआई और रोपण

इसके पौधे बीज या कलम के द्वारा तैयार किए जाते है। इसकी नर्सरी मार्च-अप्रैल के महीने में लगाई जाती है जबकि ऋण का काम जुलाई से सितंबर महीने तक किया जा सकता है। 

पौधे से पौधे की दूरीः

इसके पौधे की दूरी असिंचित क्षेत्रों में 2×2 मीटर और सिंचित क्षेत्रों में 3×3 मीटर की रखी जाती है। जबकि इसके लिए गड्ढे का आकार 45×45 x45 (लम्बाई x चौडाई x गहराई) से.मी. होता है। रतनजोत के पौधों को बाड़ के रूप में लगाने पर दूरी 0.50 x 0.50 मी.(दो लाइन) रखी जाती है।

पौधशाला

(1) समतल क्यारीः 15 x15 से.मी. दूरी पर बीज बोयें। बोने के पूर्व बीज को 12 घंटो तक भिगोयें। तीन माह बाद स्वस्थ पौधों को रोपें।

(2) पॉली बैंगः बालू मिट्टी तथा कम्पोस्ट खाद (1:1:1) के मिश्रण को पॉली बैग (16″x12″) में भरें। 2-3 बीज बोयें, सिंचाई करें तथा स्वस्थ पौधों की 3 माह बाद रोपाई करें।

रोपण की विधिः

गड्डे में रेत, मिट्टी तथा कम्पोस्ट की खाद का मिश्रण 1:1:1 के अनुपात में भरें। नर्सरी में तैयार पौधों की रोपाई जुलाई माह से शुरू करें। कलम द्वारा तैयार करने हेतु लम्बाई 30-50 सेंटी मीटर व्यास, स्वस्थ, सुडौल चमकदार कई आँखों वाली निचली टहनियाँ चुनें।

खाद एवं उर्वरकः

रोपण से पूर्व गड्ढे में मिट्टी (4 किलो), कम्पोस्ट की खाद (3 किलो) तथा रेत (3 किलो) के अनुपात का मिश्रण भरकर 20 ग्राम यूरिया 120 ग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट तथा 15 ग्राम म्युरेट ऑफ पोटाश डालकर मिला दें। दीमक नियंत्रण के लिए क्लोरो पायरिफॉस पाउडर (50 ग्राम ) प्रति गड्डा में डालें, तत्पश्चात पौधा रोपण करें।

सिंचाई एवं गुड़ाईः

शुष्क मौसम में दो सिंचाई उत्तम रहती है। प्रत्येक तीन माह के अन्तराल पर खाद का प्रयोग तथा गुड़ाई करें।

खरपतवार नियंत्रणः

नर्सरी के पौधों को खरपतवार नियंत्रण के लिए विशेष ध्यान रखने की जरूरत है। वहीं बारिश के मौसम में हर महीने खरपतवार नियंत्रण करें।

रोग नियंत्रणः

इसके नाजुक पौधे में जड़-सड़न तथा तना बिगलन रोग होना मुख्य है। नर्सरी तथा पौधों में रोग के लक्षण होने पर 2 ग्राम बीजोपचार मिश्रण प्रति लीटर पानी में घोल को सप्ताह में दो बार छिड़काव करें।

कीट नियंत्रणः

नाजुक पौधों में कटूवा तने को काट सकता है। इसके लिए लिंडन या फ़िल्लीडॉल धूल का सूखा पाउडर के भूरकाव से नियंत्रित किया जा सकता है। जबकि माइट के प्रकोप से बचाव के लिए 1 मिली लीटर मेटासिस्टॉक्स दवा को 1 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।

कटाई-छँटाईः

पौधों को गोल छाते का आकार देने के लिए दो साल तक कटाई-छँटाई जरूरी है। पहली कटाई में रोपण के 7-8 महीने के बाद पौधों को भूमि से 30-45 से.मी. छोड़कर शेष ऊपरी हिस्सा काट देना चाहिए। दूसरी छँटाई दोबारा 12 महीने बाद सभी टहनियों में 1/3 भाग छोड़कर शेष हिस्सा काट देना चाहिए। प्रत्येक छँटाई के पश्चात 1 ग्राम बेविस्टीन 1 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। अप्रैल और मई महीनों में छँटाई का कार्य करते हैं।

उपजः

बरसात के समय में पौधे में फूल आना शुरू हो जाता है तथा दिसंबर-जनवरी माह में हरे रंग के फल काले पड़ने लगते हैं। जब फल का ऊपरी भाग काला पड़ने लगे तब तोड़ा जा सकता है।

प्रथम वर्षः कोई बीज उत्पाद नहीं

द्वितीय वर्षः कोई बीज उत्पाद नहीं

तृतीय वर्षः 500 ग्राम/ पेड़ (12.5 क्विंटल/हेक्टेयर)

चतुर्थ वर्षः 1 किलो ग्राम/ पेड़ (25 क्विंटल/हेक्टेयर)

पंचम वर्षः 2 किलो ग्राम/ पेड़ (50 क्विंटल/हेक्टेयर)

छठे वर्षः 4 किलो ग्राम/ पेड़ (100 क्विंटल/हेक्टेयर) एवं आगे।

आय साधारणतया 6रुपये प्रति किलो ग्राम बीज की विक्रय दर से गणना करें।

साभार : बिरसा कृषि विश्वविद्यालय

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