अदरक : औषधि ही नहीं सौन्दर्य सामग्री में भी है अहम उपयोगिता

Aug 3, 2025 - 18:00
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अदरक : औषधि ही नहीं सौन्दर्य सामग्री में भी है अहम उपयोगिता

देश में अदरक की खेती का क्षेत्रफल 136 हजार हेक्टर है जो उत्पादित अन्य मसालों में प्रमुख हैं। देश में हल्की अदरक की खेती मुख्यत: केरल, उडीसा, आसाम, उत्तर प्रदेश, पश्चिमी बंगाल, आंध्रप्रदेश, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश तथा उत्तरांचल प्रदेशों में मुख्य व्यवसायिक फसल के रूप में की जाती है। हालांकि अदरक उत्पादन के मामले में केरल देश में प्रथम स्थान पर हैं ।

 हालांकि इसकी उपयोगिता की बात की जाए तो इसका उपयोग मसाले, औषधिया तथा सौंदर्य सामग्री के रूप में वैदिक काल से होता रहा हैं। इसकी उपयोगिता यहीं तक सीमित नहीं बल्कि इसका इस्तेमाल आचार, चाय के अलावा कई व्यजंनो में भी प्रयोग किया जाता हैं। एक औषधि के रूप में इसका इस्तेमाल सर्दी-जुकाम, खाँसी ,खून की कमी, पथरी, लीवर वृद्धि, पीलिया, पेट के रोग, वाबासीर, अमाशय तथा वायु रोगीयों के लिये दवाओ के बनाने में प्रयोग की जाती हैं। वहीं मसाले के रूप में- चटनी, जैली, सब्जियो, शर्बत, लडडू, चाट आदि में कच्ची तथा सूखी अदरक का उपयोग किया जाता हैं । जबकि सौंदर्य प्रसाधन में अदरक का तेल, पेस्ट, पाउडर तथा क्रीम को बनाने में किया जाता हैं ।

अदरक का वानस्पतिक परिचय

अदरक का वानस्पतिक नाम जिनजिबेर ओफिसिनेल है जो जनजीबेरेसी परिवार से सम्बंध रखती है । अदरक की करीब 150 प्रजातियां उष्ण एवं उप उष्ण एशिया और पूर्व एशिया तक पाई जाती हैं । 

जलवायु - अदरक की खेती गर्म और आर्द्रता वाले स्थानों में की जाती है। मध्यम वर्षा बुवाई के समय अदरक की गांठों के जमाने के लिये जरूरी होती है इसके बाद थोडा ज्यादा वर्षा पौधों को वृद्धि के लिये तथा इसकी खुदाई के एक माह पूर्व सूखे मौसम की आवश्यकता होती हैं। अगेती बुआई या रोपण अदरक की सफल खेती के लिये जरूरी हैं । 1500-1800 मि .मी .वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में इसकी खेती अच्छी उपज के साथ की जा सकती हैं । 

भूमि - अदरक की खेती बलुई दोमट वाली भूमि बहुत उपयुक्त होती है। मृदा का पीएस मान 5-6 ये 6.5 अच्छे जल निकास वाली भूमि सबसे अच्छी अदरक की अधिक उपज के लिऐ रहती हैं। हालांकि भूमि जनित रोग व कीटों से बचाने के लिए फसल चक्र अपनाना चाहिये। साथ चित जल निकासी की व्यवस्उथाअ होनी चाहिए क्योंकि उचित जल निकास न होने से कन्दों का विकास ठीक से नही हो पाता है।

बीज की मात्रा - अदरक के बीजों का चयन के लिए 6-8 माह की अवधि वाली फसल में पौधों को चिन्हित कर काट लेना चाहिये। बीज उपचार मैंकोजेव फफूँदी से करने के बाद ही प्रर्वधन हेतु उपयोग करना चाहिये।

बुवाई - इसकी बुबाई दक्षिण भारत में अप्रैल – मई में की जाती जो दिसम्बर में जाकर परिपक्क होती है । जबकि मध्य एवं उत्तर भारत में अप्रैल से जून माह तक का समय बुआई अच्छा हैं। हालांकि सबसे उपयुक्त समय 15 मई से 30 मई हैं । 15 जून के बाद बुआई करने पर बीज सड़ने लगते हैं और अंकुरण पर प्रतिकूल बुरा पड़ता हैं । केरल में अप्रैल के प्रथम समूह पर बुआई करने पर उपज 200% तक अधिक पाई जाती हैं । वही सिचाई क्षेत्रों में इसकी अधिक उपज फरवरी के मध्य बोने से प्राप्त हुई पायी गयी तथा बीजों के जमाने में 80% की वृद्धि पाई गयी । पहाड़ी क्षेत्रो में 15 मार्च के आस-पास बुआई की जाने वाली अदरक में सबसे अच्छा उत्पादन प्राप्त हुआ

बोने की विधि व क्यारी के बीच अंतर

प्रकन्दों को 40 सेमी .के अन्तराल व मेड़ या कूड़ विधि से बुवाई करनी चाहिये । प्रकन्दों को 5 सेमी .की गहराई पर बोना चाहिये । बाद में अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद या मिट्टी से ढक देना चाहिये । यदि रोपण करना है तो कतार से कतार 30 सेमी .और पौध से पौध 20 सेमी .पर करे । अदरक की रोपाई 15*15, 20*40 या 25*30 सेमी .पर भी कर सकते हैं । भूमि की दशा या जलवायु के प्रकार के अनुसार समतल कच्ची क्यारी, मेड-नाली आदि विधि से अदरक की वुवाई या रोपण किया जाता है ।

फसल प्रणाली - अदरक की फसल को रोग एवं कीटों में कमी लाने एवं मृदा के पोषक तत्वो के बीच सन्तुलन रखने के लिए अदरक को सिंचित भूमि में पान, हल्दी, प्याज, लहसुन, मिर्च अन्य सब्जियों, गन्ना, मक्का और मूँगफली के साथ फसल को उगाया जा सकता है। वर्षा अधिक सिंचित वातावरण में 3-4 साल में एकबार आलू, रतालू, मिर्च, धनिया के साथ या अकेले ही फसल चक्र में आ सकती हैं ।

पलवार - अदरक की फसल में पलवार विछाना बहुत ही लाभदायक होता हैं । रोपण के समय इससे भूमि का तापक्रम एवं नमी का सामंजस्य बना रहता है । जिससे अंकुरण अच्छा होता है । खरपतवार भी नही निकलते और वर्षा होने पर भूमि का क्षरण भी नही होने पाता है । रोपण के तुरन्त बाद हरी पत्तियां या लम्बी घास पलवार के लिये ढाक, आम, शीशम, केला या गन्ने के ट्रेस का भी उपयोग किया जा सकता हैं । 10-12 टन या सूखी पत्तियाँ 5-6 टन/है. बिछाना चाहिये। दोबारा इसकी आधी मात्रा को रोपण के 40 दिन और 90 दिन के बाद बिछाते हैं , पलवार बिछाने के लिए उपलब्धता के अनुसार गोबर की खाद एवं पत्तियां, धान का पूरा प्रयोग किया जा सकता हैं । 

निदाई, गुडाई व मिट्टी चढ़ाना - पलवार के कारण खेत में खरपतवार नही उगते अगर उगे हो तो उन्हें निकाल देना चाहिये, दो बार निदाई 4-5 माह बाद करनी चाहिये । साथ ही मिट्टी भी चढाना चाहिए । जब पौधे 20-25 सेमी. ऊंचे हो जाये तो उनकी जड़ो पर मिट्टी चढाना आवश्यक होता हैं । इससे मिट्टी भुरभुरी हो जाती है । तथा प्रकंद का आकार बड़ा होता है, एवं भूमि में वायु आगमन अच्छा होता हैं । अदरक के कंद बनने लगते है तो जड़ों के पास कुछ कल्ले निकलते हैं । इन्हे खुरपी से काट देना चाहिऐ, ऐसा करने से कंद बड़े आकार के हो पाते हैं ।

पोषक तत्व प्रबन्धन

 उर्वरकों का उपयोग मिट्टी परीक्षण के बाद करना चाहिए । खेत तैयार करते समय 250-300 कुन्टल हेक्टेयर के हिसाब से सड़ी हई गोबर या कम्पोस्ट की खाद खेत में सामन्य रूप से फैलाकर मिला देना चाहिए। प्रकन्द रोपण के समय 20 कुन्टल /है. मी पर से नीम की खली डालने से प्रकन्द गलब एवं सूत्रि कृमि या भूमि शक्ति रोगों की समस्या कम हो जाती हैं । जबकि रासायनीक उर्वरकों की मात्रा को 20 कम कर देना चाहिए यदि गोबर की खाद या कम्पोस्ट डाला गया है तो । संन्तुष्ट उर्वरको की मात्रा 75 किग्रा. नत्रजन, किग्रा. कम्पोस्टस और 50 किग्रा .पोटाश /है. हैं । इन उर्वरकों को विघटित मात्रा में डालना चाहिऐ (तालिका) प्रत्येक बार उर्वरक डालने के बाद उसके ऊपर मिट्टी में 6 किग्रा .जिंक/है. (30 किग्रा .जिंक सल्फेट) डालने से उपज अच्छी प्राप्त होती हैं ।

 खुदाई - अदरक की खुदाई लगभग 8-9 महीने रोपण के बाद कर लेना चाहिये जब पत्तियां धीरे-धीरे पीली होकर सूखने लगे। खुदाई से देरी करने पर प्रकन्दों की गुणवत्ता और भण्डारण क्षमता में गिरावट आ जाती है, तथा भण्डारण के समय प्रकन्दों का अंकुरण होने लगता हैं । खुदाई कुदाली या फावडे की सहायता से की जा सकती है। बहुत शुष्क और नमी वाले वातावरण में खुदाई करने पर उपज को क्षति पहुंचती है जिससे ऐसे समय में खुदाई नहीं करना चाहिऐ । खुदाई करने के बाद प्रकन्दों से पत्तीयो, मिट्टी तथा अदरक में लगी मिट्टी को साफ कर देना चाहिये । यदि अदरक का उपयोग सब्जी के रूप में किया जाना है तो खुदाई रोपण के 6 महीने के अन्दर खुदाई किया जाना चाहिऐ। प्रकन्दों को पानी से धुलकर एक दिन तक धूप में सूखा लेना चाहिये । सूखी अदरक के प्रयोग हेतु 8 महीने बाद खोदी गई है, 6-7 घन्टे तक पानी में डुबोकर रखें इसके बाद नारियल के रेशे या मुलायम व्रश आदि से रगड़कर साफ कर लेना चाहिये । धुलाई के बाद अदरक को सोडियम हाइड्रोक्लोरोइड के 100 पी पी एम के घोल में 10 मिनट के लिये डुबोना चाहिऐ । जिससे सूक्ष्मे जीवों के आक्रमण से बचाव के साथ-साथ भण्डारण क्षमता भी बड़ती है।अधिक देर तक धूप ताजी अदरक को 170-180 दिन बाद खुदाई करके नमकीन अदरक तैयार की जा सकती है । मुलायम अदरक को धुलाई के बाद 30 प्रतिशतनमक के घोल जिसमें 1% सिट्रीक अम्ल में डुबो कर तैयार किया जाता हैं । जिसे 14 दिनों के बाद प्रयोग और भण्डारण के योग हो जाती है ।

उपज-

ताजा हरे अदरक के रूप में 100-150 कु. उपज/हे. प्राप्त हो जाती है । जो सूखाने के बाद 20-25 कु. तक आ जाती हैं । उन्नत किस्मो के प्रयोग एवं अच्छे प्रबंधन द्वारा औसत उपज 300कु./हे. तक प्राप्त की जा सकती है।इसके लिये अदरक को खेत में 3-4 सप्ताह तक अधिक छोड़ना पडता है जिससे कन्दों की ऊपरी परत पक जाती है । और मोटी भी हो जाती हैं।

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