कम लागत में करें मुर्गीपालन का व्यवसाय, ऐसे होगा मुनाफा

मुर्गी पालन के व्यवसाय प्रति पशुपालक किसानों की रुचि धीरे - धीरे बढ़ती जा रही है क्योंकि यह कम लागत में अधिक मुनाफा देने में सक्षम है। यह व्यवसाय कम जगह में बड़ी ही सुगमतापूर्वक किया जा सकता है। किसान कुछ ही मुर्गियों के साथ भी छोटे स्तर पर इसे शुरू कर सकते हैं और फिर चरणबद्ध तरीके आगे बढ़ा सकते हैं। हालांकि इसमें कुछ सावधानी बरतने की भी जरूरत होती है।
मुर्गी पालन के व्यवसाय के लिए सबसे पहले शेड के साथ उपयुक्त खुली जगह भी होनी चाहिए। यदि बंद जगह पर इसे किया जाएगा तो इससे मुर्गियों में बीमारी का खतरा बढ़ सकता है। मुर्गीपालन की शुरुआत करने से पहले यह तय करना आवश्यक है कि इस व्यापार को मुर्गी के मांस, अंडे या फिर दोनों के लिए करना हैं। देसी मुर्गियों का पालन अंडे व मीट के लिए किया जाता है। देसी मुर्गी के चूजे 30 से 40 रुपये के बीच में आसानी से मिलते हैं। वहीं ब्रॉयलर मुर्गी के चूजे भी इसी कीमत पर मिलते हैं। इन मुर्गियों को टूटे चावल और गेहूं के साथ अलसी और मक्का के दाने भी दिए जाते हैं। जबकि लेयर मुर्गी 4 से 5 महीने की उम्र अंडे देती हैं। यह किस्म पालकों को करीब एक साल तक अंडे देती हैं। जब मुर्गी अंडा देना बंद कर देती है तो इसे मीट के लिए बेचा जाता है। ब्रॉयलर मुर्गियों का पालन मीट के लिए किया जाता है। यह मुर्गी काफी तेजी से विकसित होती है। इस कारण इस मुर्गी को मीट के लिए अच्छा माना जाता है। माना जाता है कि 100 मुर्गियों को तैयार करने में लगभग 15 हजार का खर्च आ सकता है। यह खर्च जगह, मुर्गियों की किस्म आदि पर भी निर्भर करता है। वहीं अधिकतर मुर्गियां सिर्फ चार से पांच महीनों में तैयार हो सकती हैं।
देसी मुर्गी की किस्म
देश भर में देसी मुर्गियों का पालन किसानों के बीच बहुत प्रसिद्ध हो रहा है। तो आइए जानते हैं इन मुर्गियों की किस्मों के बारे में....
पंजाब ब्राउन: इस नस्ल के मुर्गे का वजन 2 किलो इनकी मुर्गी का वजन 1.5 किलो तक हो सकता है। यह किस्म हर साल 60 से 80 अंडे दे सकती है। इसका इस्तेमाल किसान अंडे के साथ मीट के लिए भी कर सकते हैं। इन मुर्गियों का पालन पंजाब और उतरी भारत में किया जाता है
निकोबारी: इस नस्ल के मुर्गे और मुर्गी का आकार छोटा होता है। इसका पालन विशेष रूप से अंडा उत्पादन के लिए किया जाता है।इस नस्ल की मुर्गी पार्टी वर्ष 150 से 160 अंडे दे सकती है। इसका पालन करने किसानों को अंडों के अलावा मांस उत्पादन का भी लाभ मिलता है।
बुसरा: बुसरा मुर्गा और मुर्गी मध्यम आकार के होते हैं। इसे मुख्य रूप से मांस उत्पादन के लिए पाला जाता है। इस नस्ल के मुर्गे का वजन 1.25 किग्रा. तक वजन करता है, जबकि मुर्गी का वजन 1.2 किग्रा. तक होता है। बुसरा मुर्गियों का वार्षिक अंडा उत्पादन 40 से 55 अंडे तक होता है। यह किस्म किसानों को मांस और अंडे दोनों के लिए लाभकारी सिद्ध होता है।
असील:यह नस्ल मजबूत शारीरिक बनावट के लिए मशहूर है। इसका पालन ज्यादातर मांस उत्पादन के लिए किया जाता है। वजन की बात की जाए तो मुर्गे का वजन 4 से 5 किग्रा. जबकि मुर्गी का वजन 3 से 4 किग्रा. तक होता है। यह मुर्गी सालभर में 90 अंडे देती है। यह नस्ल उच्च गुणवत्ता के मांस के लिए अच्छे माने जाते हैं।
अंकलेश्वर: यह मुर्गी विशेष तौर पर गुजरात क्षेत्र में पाई जाती है। इसे मांस और अंडे दोनों के लिए उपयुक्त माना जाता है। मुर्गे का वजन 2.5 से 3 किग्रा. वहीं मुर्गी का वजन 2 से 2.5 किग्रा. तक होता है। अंडा उत्पादन की बात करे साल भर में इस प्रजाति से 80-100 अंडे प्राप्त होते हैं। इसे अच्छा मांस और अंडा उत्पादक विकल्प के तौर पर देखा जाता है।
मिरी: यह प्रजाति ज्यादातर असम क्षेत्र से आती है। इसका मुर्गी का वजन धीरे धीरे बढ़ता रहता है। मिरी मुर्गियों का वार्षिक अंडा उत्पादन 60 से 70 अंडे तक होता है। यह नस्ल कम खाद्य लागत में भी अच्छी तरह से पल सकती है और स्थानीय परिस्थितियों के लिए उपयुक्त मानी जाती है।
तेल्लीचेरी: यह केरल में पाई जाती है। इस नस्ल के मुर्गे का वजन 1.7 किग्रा. और मुर्गी का वजन 1.4 किग्रा. तक हो सकता है। इस प्रजाति की मुर्गी एक वर्ष में 60 से 80 अंडे देती है, जिसका वजन 40 ग्राम तक हो सकता है। यह किसानों के लिए मांस और अंडे दोनों का अच्छा स्रोत है।
कश्मीर फेवीरोल्ला: कश्मीर फेवीरोल्ला मुर्गी मांस और अंडे दोनों के लिए बेहद उपयुक्त प्रजाति है। इससे वार्षिक अंडा उत्पादन लगभग 80 अंडे तक होता है। यह नस्ल कम खर्चीले आहार पर जीवित रह सकती है।
कड़कनाथ: कड़कनाथ मुर्गी मांस और अंडे दोनों के लिए लोकप्रिय है। इस प्रजाति के मुर्गे का वजन 2.5 से 3 किग्रा. तक होता है, जबकि मुर्गी का वजन 1.8 से 2.5 किग्रा. तक हो सकता है। वार्षिक अंडा उत्पादन 80 अंडे होता है। यह नस्ल विशेष रूप से काले मांस के लिए जानी जाती है, जो स्वाद में अत्यधिक प्रसिद्ध है।
उत्तरा: उत्तरा नस्ल की अन्य नस्लों की अपेक्षा बिल्कुल अलग होती है। यह मुख्यता उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र से संबंधित है। इस नस्ल की मुर्गी हर साल 125 से 160 अंडे देती है, जिसका वजन 49.8 से 52.7 ग्राम तक होता है।
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