Desi Kapaas : इन किस्मों में नहीं लगते कीट एवं रोग

Aug 4, 2025 - 21:09
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Desi Kapaas : इन किस्मों में नहीं लगते कीट एवं रोग

कपास पर कीट और रोग का प्रभाव पड़ने के कारण खेती की लागत में वृद्धि हो रही है, यही कारण है कि सरकार कपास की देसी किस्मों को विकसित करने की कवायद में जुटी है। इसको लेकर राज्यसभा में पूछे गए सवाल के जवाब में सरकार की ओर से बताया कि देसी कपास की किस्मों को विकसित किए जाने को लेकर अध्ययन किया जा रहा है। साथ ही देसी कपास स्टेपल फाइबर की लंबाई बढ़ाने को लेकर अनुसंधान भी किए जा रहे हैं।  

     कृषि और किसान कल्‍याण राज्‍य मंत्री कैलाश चौधरी ने बताया कि देसी कपास की किस्में गॉसिपियम आर्बोरियम कीड़ों, बीमारियों और सूखे के प्रति मज़बूत है। हाल ही में देश के वैज्ञानिकों ने देसी कपास की 32 मिमी की किस्में उगाकर असंभव कार्य कर दिखाया है।

     उन्होंने बताया कि कई शोध से पता चला है कि देसी कपास की प्रजाति ‘गॉसिपियम आर्बोरियम’ कपास की पत्ती मोड़ने वाले वायरस से सुरक्षित है। रस चूसने वाले कीटों के प्रकोप को सह सकती हैं। उन्होंने बताया कि यह बैक्टीरियल ब्लाइट और अल्टरनेरिया रोग के प्रभाव को तो शन कर सकती है लेकिन ग्रे-फफूंदी रोग के प्रति संवेदनशील है। उन्होंने बताया कि देसी कपास की प्रजातियां नमी को भी सहन कर सकती हैं।

कपास उत्पादक क्षेत्रों और राज्यों में व्यावसायिक के लिए

लिए कुल 77 आर्बोरियम कपास क़िस्में जारी की गई है। इसमें वसंतराव नाइक मराठवाड़ा के वैज्ञानिकों ने चार लंबी रोयेंदार किस्में विकसित की हैं। जो पीए 740, पीए 810, पीए 812 और पीए 837 हैं। कृषि विद्यापीठ, परभणी की स्टेपल लंबाई 28-31 मिमी है, और बाकी 73 किस्मों की मुख्य लंबाई 16-28 मिमी की सीमा में है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद – ऑल इंडिया कॉटन रिसर्च प्रोजेक्ट ऑन कॉटन के परभणी केंद्र ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद – सेंट्रल इंस्टीट्यूट फॉर रिसर्च ऑन कॉटन टेक्नोलॉजी, नागपुर केंद्र में ऊपरी आधी औसत लंबाई, जिनिंग आउट टर्न, माइक्रोनेयर वैल्यू सहित कताई परीक्षणों के लिए देसी कपास की किस्मों का परीक्षण किया है। परीक्षणों में कताई की किस्‍मों को सफल घोषित किया गया है। देसी कपास स्टेपल फाइबर की लंबाई बढ़ाने के लिए अनुसंधान का प्रयास जारी हैं। 2022-23 के दौरान इन किस्मों के 570 किलोग्राम बीजों का उत्पादन किया गया था। कृषि राज्य मंत्री ने बताया कि अगले बुआई सत्र में बुआई के लिए किसानों के पास पर्याप्त मात्रा में बीज उपलब्ध है।

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